84 लाख योनियों का रहस्य

इस ब्लॉग में हम जानेंगे 84 लाख योनियों का रहस्य, जहाँ आत्मा के जन्म-मरण के चक्र और मनुष्य जन्म की महत्ता का गूढ़ विज्ञान छिपा है।
इस लेख में आप जानेंगे कि आत्मा (जीवात्मा) 84 लाख योनियों में कैसे भटकती है और क्यों मनुष्य योनि को सबसे श्रेष्ठ कहा गया है।
सनातन धर्म के अनुसार आत्मा अपने कर्मों के आधार पर स्थावर, जलचर, कीट-पतंग, पक्षी, पशु और मनुष्य जैसी योनियों में जन्म लेती है।
यह लेख आपको बताएगा कि इन योनियों का वर्गीकरण क्या है, मनुष्य योनि में मोक्ष क्यों संभव है, और यह संख्या आध्यात्मिक व वैज्ञानिक दृष्टि से क्या प्रतीक करती है।
यदि आप आत्मा, पुनर्जन्म और कर्मफल के रहस्यों को दार्शनिक और तर्कसंगत रूप में समझना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए पूर्ण मार्गदर्शक है।
प्रस्तावना (Introduction) : –
प्रिय साधकों,“क्या आपने कभी सोचा है कि आत्मा (जीवात्मा) शरीर छोड़ने के बाद कहाँ जाती है?” क्या केवल मनुष्य और पशु ही जीवन के रूप है या इस सृष्टि में और भी अनगिनत योनियाँ मौजूद हैं? बचपन से ही हमलोग 84 लाख योनियों के बारे में सुनते आये हैं लेकिन हमलोग में से अधिकांश लोग इन 84 लाख योनियों के बारे में गंभीरता से जानने की कोशिश नहीं की है।
सनातन धर्म के शास्त्र बताते हैं कि आत्मा (जीवात्मा) अपने कर्मो के आधार पर 84 लाख योनियों में भटकती रहती है। इनमें पेड़ पौधे, जल में रहने वाले जीव, कीट-पतंग, पशु ,पक्षी और अन्ततः मनुष्य जन्म शामिल हैं। लेकिन इनमें मनुष्य योनि को सबसे श्रेष्ठ क्यों माना गया है। इस आलेख में हम विस्तार से समझेंगे कि 84 लाख योनियाँ क्या हैं, उनका वर्गीकरण कैसे है, और मनुष्य जन्म का महत्व इतना अद्वितीय क्यों है?”

योनि क्या है (What is Yoni) ?
“योनि” का मतलब होता है “जन्म लेने का माध्यम” या जीव का प्रकार। यानि,किसी भी जीवात्मा को जब नया शरीर मिलता है -चाहे वह मनुष्य का हो,पशु का हो,पक्षी का हो या किट-पतंग का –तो वह शरीर उसकी योनि कहलाती है। उदहारण के लिए —
मनुष्य को —— मनुष्य योनि
कुत्ता,बिल्ली,गाय इत्यादि को —– पशु योनि
पक्षी, जैसे- तोता,कौआ,कबूतर इत्यादि को——- पक्षी योनि
मछली,कछुआ मगरमच्छ इत्यादि को —— जलचर योनि
देवता को —– देव योनि
प्रेत,भूत इत्यादि को —- प्रेत योनि इत्यादि।
शास्त्रों में कहा गया है की ब्रह्माण्ड में 84 लाख प्रकार के जीव रूप (Species / forms) हैं यानि 84 लाख प्रकार के शरीर जिनमें आत्मा जन्म ले सकती है।
84 लाख योनियों के बारे में पद्म पुराण और विष्णु पुराण में विस्तार से वर्णन किया गया है। इसके अलावा श्रीमद्भागवत पुराण और गरुड़ पुराण में भी इनका उल्लेख मिलता है।
पद्म पुराण के अनुसार 84 लाख योनियाँ : –
| Sl. No | योनियाँ (Yonis) | संख्या (Probability) | टिप्पणी (Comments) |
|---|---|---|---|
| 1 | स्थावर (पेड़-पौधे) / Plants | 20 लाख | पेड़-पौधे, घास, लताएं, इत्यादि अचल प्राणी। |
| 2 | जलचर (Aquatic beings) | 9 लाख | मछली, मेंढक, मगरमच्छ, कछुआ इत्यादि। |
| 3 | किट-पतंग / सरीसृप (Insects and worms) | 11 लाख | मक्खी, मच्छर, दीमक, चींटी इत्यादि। |
| 4 | पक्षी (Birds) | 10 लाख | तोता, मैना, कबूतर, कौआ, हंस, मोर इत्यादि। |
| 5 | पशु (Animals) | 30 लाख | हाथी, घोड़ा, ऊंट, हिरण, शेर, बकरी इत्यादि। |
| 6 | मनुष्य (Humans) | 4 लाख | विभिन्न देशों/ग्रहों में रहने वाले अनेक प्रकार के मानव। |
84 LAKH SPECIES :https://iskcondesiretree.com/forum/topics/84-lakh-species
पद्म पुराण के इस संस्कृत श्लोक में इसका वर्णन इस प्रकार लिखा गया है–
जलचरम नौलक्षं स्थावरं विंशतिलक्षं । कृमिसरीसृपं एकादश, पक्षी दश।
चतुरलक्षं मानुषं तिर्यक त्रिंशद् । इति चतुश्चत्वारिंशद लक्षणं ब्राह्मणः शरिरम् ।। —- (पद्म पुराण)
आधुनिक विज्ञान के अनुसार अमीबा (Amoeba) से लेकर मानव तक की यात्रा में लगभग 1 करोड़ 4 लाख योनियाँ मानी गई हैं। उनका मानना है कि वक़्त के साथ अन्य तरह के जीव जन्तु भी उत्पन्न हुए हैं इसलिए अभी लगभग 1 करोड़ 4 लाख के आस – पास योनियाँ अस्तित्व में हैं।
यह 84 लाख योनियों का अर्थ हिंदू और जैन धर्म में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीवन रूपों की कुल संख्या है न कि कोई वास्तविक संख्या। कहा जाता है कि आत्मा (जीवात्मा) अपने कर्म के अनुसार इन 84 लाख योनियों में भटकते रहता है। यानि आत्मा विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों, प्राणियों और मनुष्यों के रूप में जन्म ले सकती है।
हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य योनि ही ऐसी है जिसमें आत्मा मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त कर सकती है। अन्य योनियों में यह अवसर नहीं मिलता क्योंकि वे केवल भोग-योनि हैं।
आपने बार-बार लोगों से सुना होगा कि 84 लाख योनियों में भटकने के बाद ही आत्मा को मनुष्य जन्म मिलता है,तो क्या मनुष्य योनि इन 84 लाख से अलग है ?अगर अलग है तो योनियों की संख्या तो 84 लाख से ज्यादा होनी चाहिये ।
इसका उत्तर है नहीं, ऐसा नहीं है। शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य योनि भी इन 84 लाख योनियों में ही शामिल है। यानि 84 लाख में से 4 लाख हिस्से मनुष्या योनि के लिए हैं।
4 लाख मनुष्य योनि :-
4 लाख मनुष्य योनि =उसी टोटल 84 लाख योनि में मनुष्य के 4 लाख अलग-अलग प्रकार ।
आत्मा को मनुष्य जन्म मिलने तक अन्य योनियों में अनुभव लेना पड़ता है, और फिर मनुष्य योनि मिलती है।
असल में लोग कहते हैं कि “आत्मा 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य योनि पाता है”। यह साधारण भाषा में आत्मा की यात्रा को समझाने का तरिका है।असल में उसी 84 लाख योनि में मानव योनि भी है। ऐसा बोलने का मुख्य कारण है मनुष्य जन्म का महत्व समझाना – यह सबसे दुर्लभ अवसर है। लोग ऐसा कहकर साधना और धर्म पर ध्यान देने के लिए प्रेरित करते हैं। यह कहावत आध्यात्मिक शिक्षा देने के लिए बनाई गई है।
10 लाख पक्षी योनि का सही मतलब क्या है?(What is correct meaning of 10 lakh Birds yonis):
10 लाख पक्षी योनि का मतलब है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कुल 10 लाख प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं।
उदाहरण के लिए—–
कबुतर ——– एक योनि
कौआ ——- एक योनि
तोता ——- एक योनि
मैना ——- एक योनि
इस तरह से कुल 10 लाख पक्षी योनि हैं।
नोट —
कबूतर में भी फिर कई तरह कि कबूतर हैं परन्तु पुरे कबूतर वर्ग को एक ही योनि मानी जाती है। इसी प्रकार तोते (Parrots) में भी अनेक प्रकार हैं परन्तु उन सब को एक ही योनि में माना जाता है और वह है तोता की योनि । इस तरह से हम कह सकते हैं कि 10 लाख पक्षी योनि = 10 लाख मुख्य पक्षी का प्रकार जिनमें हजारो उप प्रकार (varieties) हो सकते हैं। यानि हमारे शास्त्रों के अनुसार ये पक्षियों के “मुख्य प्रकार”( main species ) है, रंग या स्थान के आधार पर ये अलग-अलग हो सकते हैं परन्तु एक वर्ग के सारे पक्षी एक ही योनि में गिने जाते हैं।
20 लाख स्थावर योनि का मतलब(Meaning of 20 lakh Stationary Lifeforms) :–
पुरे ब्रह्माण्ड (universe) में कुल 20 लाख प्रकार के स्थावर जीव (पेड़ -पौधे, वनस्पति, लताएँ, घास इत्यादि) हैं । स्थावर का मतलब “जो स्वयं चल नहीं सकता, जो एक स्थान पर स्थिर रहता है।” 20 लाख प्रजातियां सिर्फ धरती के लिए नहीं बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि के लिए बोला गया है। पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रह, नक्षत्र और सूक्ष्म लोक में स्थित देव वृक्ष (स्वर्गीय वृक्ष),कल्पवृक्ष, पारिजात इत्यादि सभी शामिल हैं। स्थावर के अंतर्गत आनेवाले श्रेणी को हम इस प्रकार से समझ सकते हैं —–
~ वृक्ष वर्ग जैसे- आम,पीपल,वरगद ,नीम,जामुन,कल्पवृक्ष इत्यादि।
~ लता वर्ग जैसे – बेल, लौकी, अंगूर इत्यादि
~ घास वर्ग जैसे- दूर्वा, कुश, वनघास इत्यादि
~ पुष्प वर्ग जैसे – कमल , गुलाब, मोगरा, चंपा इत्यादि
इसी प्रकार और अनेक स्थावर प्राणि हैं जो पुरे ब्रह्मांड में पाये जाते हैं और इसकी कुल प्रजातियाँ करीब 20 लाख बताई गई है।
आम के सारे पेड़ — एक योनी,
पीपल के सारे पेड़ — एक योनि
अमरूद के सारे पौधे — एक योनि
और इस तरह 20 लाख स्थावर योनि हैं। आम,अमरूद,जामुन,पीपल इत्यादि पेड़-पौधों में पुनः उप-प्रजातियों हो सकती हैं परन्तु सभी तरह के आम के पेड़ों का एक योनि और सभी प्रकार के अमरूद पौधों का एक योनि तथा सभी तरह के जामुन और पीपल के पेड़ों को एक – एक योनि माना जायेगा।
चार लाख मनुष्य योनि का सही मतलब(Correct meaning of 4 lakh yonis of humans) :-
चार लाख मनुष्य योनि का अर्थ है कि सृष्टि में लगभग 4 लाख प्रकार (varieties) के मनुष्य रूप में जीव पाये जाते हैं।
शास्त्रों में कहा गया है कि 84 लाख योनियों (84,00,000 species of life) में से 4,00,000 (4 लाख) योनियाँ मनुष्य रूपी कही गई हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि 4 लाख “मानव प्रजातियाँ” हैं, बल्कि यह कि 4 लाख प्रकार के चेतन प्राणी ऐसे हैं जिनमें मानव-जैसी बुद्धि, भाव, या चेतना का स्तर है। जिस प्रकार “10 लाख पक्षी योनियों ” का अर्थ “10 लाख” तरह के पक्षी है, वैसे ही “4 लाख मनुष्य योनियों” का अर्थ है 4 लाख तरह के मनुष्य के समान प्राणि हैं जो कर्मों,वर्ण,आश्रम,देश, परिस्थिति,आदि के आधार पर अलग-अलग होते हैं। यानि चार लाख प्रकार के जीव जिनका रूप या चेतना मानव जैसी है। जैसे-
राजा,रंक,ब्राह्मण,शूद्र
साधु,पापी,विद्वान,मुर्ख
भारत,अमेरिका,जंगल,शहर में जन्म
स्वस्थ्य,रोगी,अमीर,गरीब आदि।
इन सभी तरह के मनुष्यों में भिन्नता होती है और इसलिए इनको अलग-अलग योनियों में रखा गया है।
आइये कुछ और उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं——-
पृथ्वीवासी मनुष्य ( लगभग 20,000 प्रकार):–
ये हमलोग जैसे भौतिक शरीर वाले मनुष्य हैं। ये अलग-अलग देश,जाति, शरीर, विचार और प्रकृति के होते हैं।
जैसे–
→ भारतीय, अमेरिकी, अफ्रीकी, चीनी आदि। अर्थात इनमें भौगोलिक अंतर होता है।
→ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ,शूद्र – वर्ण के भेद के अनुसार इनमें अंतर है।
→ सज्जन, पापी, भक्त, नास्तिक, दुष्ट, तपस्वी इत्यादि – स्वभाव में अंतर वाले ।
→ जंगली, आदिवासी, सभ्य समाज, वैज्ञानिक समाज इत्यादि – संस्कृति के अनुसार अंतर।
ये सभी प्रकार के मनुष्य पृथ्वी पर करीब 20,000 योनियों में आते हैं।
एक लाख, दैवी मनुष्य (Deva Manushya) : –
ये लोग पृथ्वी से ऊपर सूक्ष्म लोकों ( स्वर्ग आदि) में रहने वाले देव समान मानव आकृति वाले प्राणि हैं। इनका शरीर प्रकाशमय (light Body) होता है, और इनकी बुद्धि सामान्य मनुष्य से बहुत अधिक होती है। जैसे-
→ गंधर्व (स्वर्गलोक के गायक/ singers )
→ अप्सराएँ (स्वर्गलोक के नर्तकी /dancers)
→ किंनर (संगीत और विद्या के देव-मानव)
→ कुबेर और यक्षगण ( सम्पत्ति के रक्षा और हिसाब-किताब रखने पाले)
→ इन्द्रलोक,सूर्यलोक,चंद्रलोक आदि के निवासी मानव रूप जीव।
नोट:- ये सब भी “मानव के समान चेतना ” वाले हैं, इसलिए ये “मनुष्य योनि” में गिने जाते हैं।
आसुरी मनुष्य (Asura manushya) – लगभग एक लाख प्रकार :-
ये भी मानव रूपी हैं, लेकिन राक्षसी प्रवृत्ति वाले। इनका स्वभाव क्रूर, अहंकारी और दैवी विरोधी होता है। इनका शरीर शक्तिशाली और भिन्न- भिन्न आकार का भी हो सकता है। जैसे रावण, कुम्भकर्ण, हिरण्यकशिपु,बाणासुर आदि। उदहारण —
→ दानव,दैत्य,राक्षस,पिशाच,प्रेत,असुरकुल इत्यादि।
→ आधुनिक युग में भी ऐसे लोग जो पुरी तरह दुस्ट विचार, हिंसा, लोभ और अधर्म में डूबे हों — वे आसुरी चेतना वाले “मनुष्य” कहलाते हैं।”
ऋषि,योगि और सिद्ध मनुष्य (Rishi , Yogi and Siddha-Manushya) – 1,80,000 प्रकार —
ये उच्च चेतना वाले, सूक्ष्म या दिव्य लोकों में रहने वाले मनुष्य हैं। इनका शरीर कभी भौतिक, कभी सूक्ष्म होता है। इनका उद्देश्य केवल सृष्टि कल्याण, ज्ञान और तप है।
उदाहरण –
(1) सप्तऋषि वशिष्ठ, विश्वामित्र, कश्यप, अत्रि ,भरद्वाज ,गौतम, जमदग्नि आदि।
(2) महर्षि, ब्रह्मर्षि, योगी, सिद्ध पुरुष।
(3) तपस्वी, परमसिद्ध, महायोगी, हिमालयवासी साधक।
4) दूसरे ग्रहों या सुक्ष्मलोकों के उच्च विकसित मानव जैसे जीव ।
नोट – ये सभी मनुष्य रूप चेतना वाले हैं। परन्तु अत्यंत उच्च स्तर पर।

सारांश (summary):–
(1 ) पृथ्वीवासी – 20,000 प्रकार (घरती वाले)
(2) दैवी – 100000 (स्वर्गीय लोक)
(3) आसुरी – 100000 प्रकार (अधोलोक- पृथ्वी के नीचे)
(4 )ऋषि योगी – 1,80,000 प्रकार (सूक्ष्म / दिव्यलोक)
कुल 4 लाख प्रकार की मानव जैसे योनि।
इसी तरह से आप पशु योनि,जलचर योनि और किट -पतंग योनि को भी अब आराम से समझ सकते हैं। मुझे उम्मीद है की अब 84 लाख योनियों के बारे में आप की शंकाएं बहुत हद तक दूर हो गयीं होंगी।
चौरासी लाख योनियों पर प्रश्नोत्तर (FAQ on 84 Lakh Yonis):–
❓1. “84 लाख योनियाँ” क्या हैं?
What does “84 Lakh Yonis” mean?
उत्तर: 84 लाख योनियाँ यानी सृष्टि में आत्मा के निवास के 84 लाख प्रकार के जीव रूप — जैसे देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट, जलचर और वनस्पतियाँ।
हर आत्मा अपने कर्मों के अनुसार इनमें से किसी एक में जन्म लेती है।
❓2. क्या सच में 84 लाख योनियाँ होती हैं या यह प्रतीकात्मक संख्या है?
Are there really 84 lakh yonis or is it just symbolic?
उत्तर:यह संख्या केवल प्रतीक नहीं है।
गरुड़ पुराण, पद्म पुराण और भागवत पुराण में इसका स्पष्ट उल्लेख है।
यह जीव-जगत की अनंत विविधता का दार्शनिक संकेत भी है।आज का विज्ञान तो इनकी संख्या इससे भी ज्यादा बताता है।
❓3. 84 लाख योनियों का वर्गीकरण कैसे किया गया है?
How are the 84 lakh yonis classified?
उत्तर:शास्त्रों में यह वर्गीकरण इस प्रकार है —
जलचर (Water beings): 9 लाख
स्थावर (Plants & Trees): 20 लाख
कीट-पतंग (Insects): 11 लाख
पक्षी (Birds): 10 लाख
पशु (Animals): 30 लाख
मनुष्य (Humans): 4 लाख
❓4. मनुष्य योनि को सर्वोत्तम क्यों कहा गया है?
Why is the human birth considered supreme among all yonis?
उत्तर:क्योंकि केवल मनुष्य योनि में ही विवेक, आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति संभव है।
अन्य योनियाँ केवल भोग के लिए हैं,
पर मनुष्य योनि योग, भक्ति और मुक्ति का मार्ग है।
❓5. क्या आत्मा हर जन्म में मनुष्य ही बनती है?
Does the soul always take birth as a human?
उत्तर:नहीं। आत्मा अपने कर्मों के अनुसार कभी ऊँची योनि (देवता)
और कभी नीची योनि (पशु या कीट) में जन्म लेती है।
मनुष्य जन्म पुण्य कर्मों का फल है।
❓6. क्या मनुष्य से नीचे की योनि में गिरना संभव है?
Can a human fall into lower yonis?
उत्तर:हाँ। यदि मनुष्य अधर्म, हिंसा या लोभ में लिप्त रहता है,
तो अगले जन्म में उसे निम्न योनि प्राप्त होती है।
जैसे हिंसक व्यक्ति सिंह या साँप बन सकता है।
❓7. क्या पशु-पक्षी अगले जन्म में मनुष्य बन सकते हैं?
Can animals and birds take human birth in the next life?
उत्तर:हाँ। जब वे अपनी योनि में सद्गुण, सेवा और भक्ति के संस्कार अर्जित करते हैं,
तो अगला जन्म मनुष्य योनि के रूप में मिलता है। खास करके पालतू जानवर इसमें अग्रणी है क्योंकि मनुष्य के संपर्क में रहने के चलते उनमें ज्ञान और समझ काफी ऊँची हो जाती है और उनमें कुछ तो ऐसे हैं जो बिलकुल मानव के तरह समझदार हो जाते हैं।
❓8. मनुष्य योनि में आत्मा का मुख्य कर्तव्य क्या है?
What is the main duty of the soul in human birth?
उत्तर:मनुष्य का परम कर्तव्य है —
धर्म पालन, सत्संग, ईश्वर भक्ति और आत्मज्ञान।
इसी जन्म में आत्मा 84 लाख योनियों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकती है।
❓9. क्या 84 लाख योनियों का क्रम निश्चित है?
Is there a fixed order among 84 lakh yonis?
उत्तर:नहीं। आत्मा का क्रम उसके कर्मों और संस्कारों से निर्धारित होता है।
वह किसी भी योनि में जन्म ले सकती है; कोई तय क्रम नहीं है।
❓10. क्या आत्मा को मोक्ष पाने के लिए सभी 84 लाख योनियों से गुजरना पड़ता है?
Does the soul have to pass through all 84 lakh yonis to attain liberation?
उत्तर:नहीं। यदि आत्मा मनुष्य योनि में ही ईश्वर साक्षात्कार कर ले,
तो उसे पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता — वही मोक्ष है।
❓11. शास्त्रों में 84 लाख योनियों का उल्लेख कहाँ मिलता है?
Where is the concept of 84 lakh yonis mentioned in scriptures?
उत्तर:“गरुड़ पुराण, पद्म पुराण, विष्णु पुराण और भागवत पुराण” में इसका उल्लेख है।
गरुड़ पुराण कहता है —
“जले नवलक्षाणि स्थले चतुर्विंशति लक्षाणि”
(जलचर 9 लाख, स्थलचर 24 लाख आदि।)
❓12. क्या सभी योनियाँ केवल पृथ्वी पर ही हैं?
Are all these yonis only on Earth?
उत्तर:नहीं। कुछ योनियाँ पृथ्वी, कुछ स्वर्ग, और कुछ अन्य लोकों में भी हैं।
आत्मा अपने कर्म के अनुसार सभी लोकों में अनुभव लेती है।
❓13. मनुष्य को कौन से कर्म नहीं करने चाहिए जिससे वह नीचे की योनि में न जाए?
What actions should humans avoid to prevent falling into lower yonis?
उत्तर:मनुष्य को चाहिए —
हिंसा, लोभ और अधर्म से बचे।
सत्य, दया और भक्ति का पालन करे।
इंद्रिय सुखों के मोह में न फँसे।
अन्यथा आत्मा पुनः निम्न योनियों में गिर सकती है।
❓14. क्या विज्ञान भी 84 लाख योनियों की अवधारणा से सहमत है?
Does modern science support the idea of 84 lakh species?
उत्तर:हाँ। आज के विज्ञान के अनुसार योनियों के संख्या अभी एक लाख से ऊपर है।
जो शास्त्रों की संख्या के बहुत करीब है।
इससे स्पष्ट है कि यह धारणा वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टि से संगत है।
❓15. 84 लाख योनियों की शिक्षा हमें क्या सिखाती है?
What lesson do we learn from the concept of 84 lakh yonis?
उत्तर:यह सिखाती है कि हर जीव में वही आत्मा विद्यमान है,
अंतर केवल शरीर का है।
इसलिए हमें सब जीवों के प्रति करुणा, दया और सम्मान रखना चाहिए।
हर आत्मा एक दिन मनुष्य बनकर मोक्ष की यात्रा कर सकती है।
🌺 निष्कर्ष (Conclusion)
इस प्रकार 84 लाख योनियाँ हमें जीवन के गहरे रहस्यों को समझने का मार्ग दिखाती हैं। हर जन्म आत्मा की यात्रा का एक चरण है, जिसका अंतिम लक्ष्य मोक्ष है।
मनुष्य योनि ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ देन है।
इसमें ही आत्मा को ज्ञान, भक्ति और मोक्ष का अवसर मिलता है।
अतः जीवन को व्यर्थ न गँवाएँ — इसे ईश्वर प्राप्ति का साधन बनाएं।
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