शरीर में पाए जाने वाले 7 चक्रों का रहस्य:
इस लेख में आप जानेंगे शरीर में पाए जाने वाले 7 चक्रों का रहस्य, जिनके माध्यम से हमारे शरीर और मन में ऊर्जा प्रवाहित होती है। जानें कि ये सात प्रमुख चक्र कैसे जीवन के हर क्षेत्र — स्थिरता, सृजन, आत्मविश्वास, प्रेम, वाणी, अंतर्ज्ञान और मोक्ष — को प्रभावित करते हैं और हमारी चेतना को जागृत करते हैं।
भूमिका (introduction) :-
हमारे शरीर में सिर्फ दिखाई देने वाले अंग ही नहीं होते, बल्कि न दिखाई देने वाले ऊर्जा के कुछ केंद्र (Energy Centers) भी होते हैं जिन्हें “चक्र” (chakras) कहा जाता है।
“चक्र ” का अर्थ है – पहिया (wheel) जो किसी धुरी (Axis) के चारो ओर घुमता है। ठीक इसी प्रकार हमारे प्राणमय शरीर (Energy body / Etheric body) में उपस्थित सुषुम्ना नाड़ी में नीचे से उपर तक सात प्रमुख चक्र उपस्थित हैं। जैसे एक पहिया अपनी धुरी (axis) के चारो ओर घूमकर ऊर्जा फैलाता है ठीक उसी तरह ये सातो प्रमुख चक्र पुरे शरीर और मन में प्राण ऊर्जा (Life Energy) का प्रवाह बनाए रखते हैं। सुषुम्ना नाड़ी को समझने के लिए पूर्व प्रकाशित (Earlier published) लेख ” इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ी का रहस्य” को पढ़ें।
जब चक्र सक्रिय (active) और संतुलित (balanced) होते हैं, तो हम शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य का अनुभव करते हैं। अगर चक्र ठीक से काम नहीं करते तो ऊर्जा (energy) का प्रवाह रुकता है, जिससे थकान, तनाव और मानसिक असंतुलन हो सकता है। इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों के तरह ही इन चक्रों को हम अपने भौतिक आँखों से देख नहीं सकते क्योंकि इनका स्वरूप सूक्ष्म होता है।
अधिकांश लोग केवल सात मुख्य चक्र के बारे में जानते हैं, लेकिन वास्तव में हमारे शरीर में 114 चक्र बताये गये हैं। इनमें से 112 शरीर के भीतर और दो शरीर के बाहर माने जाते हैं। लेकिन प्रमुख रूप से ये केवल सात ही हैं जिनकी हम आगे चर्चा करेंगे।
इस प्रकार, “शरीर में पाए जाने वाले 7 चक्रों का रहस्य” हमें यह समझाता है कि हमारे भीतर की ऊर्जा कितनी गहराई और सूक्ष्मता से कार्य करती है। ये सात चक्र न केवल हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को संतुलित रखते हैं, बल्कि हमें आत्मबोध और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में भी अग्रसर करते हैं।
चक्र कहाँ स्थित हैं ? (Where the chakras are located?):-
ये मुख्यतः हमारे रीढ़ की हड्डी (Spinal Cord) के साथ-साथ नीचे से उपर तक स्थित हैं। इसी रीढ़ की हड्डी के बीचो-बीच से होकर हमारे शरीर की सबसे प्रमुख नाड़ी “सुषुम्ना” गुजरती है। कहा जाता है कि हमारे शरीर के अंदर 72,000 सूक्ष्म नाड़ियों इन्हीं चक्रों से उत्पन्न होकर पूरे शरीर में प्राण ऊर्जा का जाल बनाती हैं।
तो आइये इन सात प्रमुख चक्रों के बारे में एक-एक करके जानकारी हासिल करने का प्रयास करते हैं-
मूलाधार चक्र – 7 चक्रों का रहस्य का प्रथम केंद्र
(1) मूलाधार चक्र (Root chakra) :-
यह हमारे शरीर का प्रथम चक्र है और इसका स्थान रीढ़ की हड्डी के सबसे नीचले सिरे (गुदा और जनन अंगों के बीच) माना जाता है।
मूलाधार शब्द दो भागों से बना है, मूल = जड़ (Root) ,आधार = नींव (Base)
यानि यह हमारे अस्तित्व की जड़ और नींव (base) है अर्थात यह हमारे शरीर और ऊर्जा का आधार है जैसे किसी पेंड की जड़ उसे स्थिर रखती है, वैसे ही यह चक्र हमें स्थिरता (Stability), सुरक्षा (security) और धरातल (Earth) से जोड़ता है। अगर यह चक्र संतुलित होता है तो व्यक्ति जीवन में निश्चिंत, स्थिर और आत्मविश्वासी (self confident) होता है। अगर यह असंतुलित हो जाए तो व्यक्ति को डर, असुरक्षा,अस्थिरता,बेचैनी, कमर या पैरों में दर्द,रोग प्रतिरोधी क्षमता की कमी ,उदासीनता,और आलस्य महसूस हो सकता है।
संतुलन के उपाय (How to balance it):-
(i) रोज शुबह धरती पर नंगे पैर चलें।
(ⅱ) शांति से बैठकर “लं” (Lam) मंत्र का जाप करें।
(iii) लाल रंग के वस्त्र और भोजन {जैसे-चुकंदर (beetroot), सेब (Apple), टमाटर (tomato) }इत्यादि का उपयोग करें। अगर यह चक्र संतुलित होता है तो व्यक्ति जीवन में निश्चिंत, स्थिर और आत्मविश्वासी (self confident) होता है। अगर यह असंतुलित हो जाए तो व्यक्ति को डर, असुरक्षा, बेचैनी और आलस्य महसूस हो सकता है।
(iv) योगासन और ध्यान (Meditation) प्रतिदिन करें। चक्र हीलिंग वाला विशेष ध्यान करें।
मूलाधार चक्र का आकार (Shape of Mooladhar chakra): -
यह एक चार पंखुड़ी वाला लाल कमल (Four petaled red lotus) होता है। इसमें पार पंखुड़ियाँ (Petals) होती हैं- जो धर्म (Dharma), अर्थ (Artha), काम (Kama) और मोक्ष (Moksha) का प्रतिक हैं। बीच में एक पीला वर्ग (yellow Square) होता है – जो पृथ्वी तत्व (Earth Element) को दर्शाता है। उस square के अंदर एक त्रिकोण (Downward-pointing triangle) होता है – जो शक्ति या ऊर्जा (Kundalini shakti) के नीचे की ओर सुप्त (सोई हुई) अवस्था को दिखाता है। इस त्रिकोण के बीच में बीज मंत्र “लं” (LAM) लिखा होता है।
पृथ्वी तत्व (Earth Element) :
“पृथ्वी तत्व” यानि स्थिरता, मजबूती और वास्तविकता (stability, strength and groundedness) का प्रतिक है। धरती सबको सहारा देती है और स्थिर रहती है। वैसे ही जब हमारा मूलाधार चक्र सक्रिय और संतुलित होता है तो हम भी जीवन में स्थिर, आत्मविश्वासी और सुरक्षित महसूस करते हैं।
नोट:-
मूलाधार चक्र जहाँ पर स्थित है वहीं पर कुंडलिनी शक्ति सुप्त अवस्था में सर्प के रूप में Coiled रहती है। इस चक्र को जागृत करना ऊच्च चेतना की ओर पहला कदम माना जाता है।
"लं" (Lam) मंत्र का जाप
स्वाधिष्ठान चक्र – 7 चक्रों का रहस्य का दूसरा पड़ाव
(2) स्वाधिष्ठान चक्र (Sacral chakra):-
यह नीचे से दूसरा चक्र है जिसका रंग नारंगी (orange) है तथा आकार एक छह पंखुड़ी वाला कमल (six-petaled Lotus) के समान है।
इस कमल के बीच में एक चाँद का आधा आकार (Crescent Moon) होता है, जो जल तत्व (Water Element) और भावनाओं के प्रवाह (Flow of Emotions) का प्रतीक है। इसका बीज मंत्र “वम” (VAM) है।
यह चक्र यौन ऊर्जा (Sexuality), रचनात्मकता(creativity), आनंद (Pleasure), और भावनाओं (Emotions) से जुड़ा होता है। इसका तत्व जल (water) है। यह एक तेज गति से चलने वाला और कम्पन्न करने वाला चक्र माना जाता है।
शरीर में इसका स्थान (location in our body): -
इसका स्थान नाभी से लगभग दो इंच नीचे यानि पेट के सबसे निचले हिस्से में होता है। मानव शरीर-के प्रजनन अंग (Reproductive organs) इसी चक्र से सम्बंधित हैं। इसे स्त्री-ऊर्जा (feminine chakra) भी कहा जाता है क्योंकि यह गर्माशय (Womb), अंडाशय (Ovaries) और मासिक धर्म चक्र (Menstrual cycle) से जुड़ा होता है। यह चंद्रमा (moon) से भी जुड़ा है, जो उर्वरता (fertility) और मासिक धर्म (Menstruation) के चक्र को नियंत्रित करता है।
बीज मंत्र: 'वं' (Vam) :
मणिपुर चक्र – 7 चक्रों का रहस्य का तीसरा केंद्र
(3) मणिपुर चक्र (The Naval chakra): -
यह चक्र नाभि (Naval) के ठीक पीछे स्थित है और नाभि के आस-पास के अंगों जैसे-पाचन तंत्र (Digestive system), यकृत (Liver), प्लीहा (spleen), पित्ताशय (Gall bladder), अग्न्याशय (Pancreas) से जुड़ा है।अगर यह चक्र संतुलित नहीं है तो पेट और पाचन तंत्र की समस्या,लिवर की समस्या,इन्सुलिन असंतुलन की समस्या,क्रोध या चिड़चिड़ापन की समस्या से हम जूझ सकते हैं। जब यह संतुलित होता है, तो यह इंसुलिन के उत्पादन में सहायता करता है। इसका रंग पीला है और यह दस पंखुडियों वाला (10- Petaled lotus) कमल होता है।
यह चक्र आत्म-विश्वास और शक्ति (confidence and power) के लिए खड़ा होता है। जब यह सक्रिय होता है, तो यह पर्यावरण और लोगों को प्रभावित करने की क्षमता देता है। यह एक प्रेरक चक्र है जो प्रतिस्पर्धा (Competition), सफलता (Success) और विजय (victory) की ओर प्रयास करता है।
मणिपुर चक्र का बीज मंत्र “रम” (Ram) है। इसे ध्यान के समय नाभि क्षेत्र पर केंद्रित होकर जाप करने से इस चक्र को सक्रिय और संतुलित करने में मदद मिलती है।
इसे कैसे सक्रिय और संतुलित करें? (How to keep it active and balanced?):-
(ⅰ) योगासन – खास करके नौकासन (Boat Pose), भुजंगासन (Cobra pose),धनुरासन (Bow pose)।
(ⅱ) प्राणायाम -मुख्यत: कपालभाती और अनुलोम-विलोम |
(ⅱⅰ) ध्यान (meditation)- नाभि पर ध्यान केंद्रित करके “रम” मंत्र का जाप करें।
(ⅰv) आहार – पीले रंग के खाद्य पदार्थ जैसे अन्नानास (Pineapple), मक्का (maize),केला (banana) इत्यादि का सेवन करें। पीला वस्त्र का उपयोग भी लाभकारी होता है।
मणिपुर चक्र बीज मंत्र (Beej Mantra):
अनाहत चक्र – 7 चक्रों का रहस्य का चौथा चरण
(4) अनाहत चक्र (The Heart chakra) : -
यह चक्र नीचे से चौथे स्थान यानि हृदय प्रदेश में स्थित है। यह प्रेम (Love), करुणा (Compassion), सहानुभूति (sympathy) और क्षमा (Forgiveness) से संबंधित चक्र है। यह हरे रंग का 12 पंखुड़ियों वाला कमल के समान है जो वायु तत्व (Air Element) से जुड़ा हुआ है। इसका हृदय, छाती, उपरी पीठ, स्तन ग्रंथियों और फेफड़ों के कार्य पर मजबूत प्रभाव होता है। इन अंगों में रक्त और ऑक्सिजन का संचार भी इस चक्र से प्रभावित रहता है और अगर यह असंतुलित हो जाए तो इन अंगों के कार्य प्रभावित हो जाते हैं।
अनाहत चक्र शरीर के सबसे महत्वपूर्ण चक्रों में से एक है। यह न केवल बाकी के छ: चक्रों (उपर के तीन और नीचे के तीन) के बीच संतुलन बनाए रखता है, बल्कि हृदय को उन सभी ऊर्जा प्रवाहों का केंद्र बनाता है। यही कारण है कि प्रेम, करुणा और शांति की अनुभूति इसी चक्र से सिधे जुड़ी होती है। अगर यह चक्र संतुलित है तो यह प्यार, करुणा और आनंद दिखाता है और अगर असंतुलित हो जाए तो परिणाम उल्टा होता है। जब यह अवरुद्ध (blocked) या असंतुलित होता है, तो लम्बे समय तक दुःख की ओर के जा सकता है।
असंतुलित हृदय चक्र शारीरिक बीमारियों से जुड़ा है जैसे अस्थमा, एलर्जी, निमोनिया और हृदय रोग।
अनाहत चक्र को कैसे संतुलित रखें (How to balance Anahata chakra):-
(i) इस चक्र का बीज मंत्र “यं” (Yam) का जप करें। ध्यान करते समय कल्पना करें कि हरा प्रकाश आपके हृदय से बाहर फैल रहा है।
(ii) हरे रंग से जुड़ें। हरा कपड़ा पहनें, पेड़ पौधों के पास समय बितायें ओर हरे रंग के फल और सब्जी खाएँ – जैसे खीरा, पालक, हरा सेब इत्यादि ।
(iii) प्रेम और करूणा को जीवन में अपनाएँ, अपने आपको और दूसरों को क्षमा करने का आदत डालें।
(iv) योग और प्राणायाम करें तथा प्यार और शांति वाले संगीत सुनें।
अनाहत चक्र बीज मंत्र (Beej Mantra):
विशुद्ध चक्र – 7 चक्रों का रहस्य का पाँचवाँ आयाम
(5) विशुद्ध चक्र (The Throat chakra ):-
नीचे से शुरू करें तो यह पांचवें स्थान का चक्र है। इसका स्थान गले के पिछे गर्दन क्षेत्र में है।
विशुद्ध का अर्थ होता है- शुद्धता या पवित्रता । यह हमारे विचारों, भावनाओं और वाणी की शुद्धता से जुड़ा होता है। यह 16 पंखुड़ियों वाला नीले रंग का कमल है और इसका बीज मंत्र “हं” (Ham) है तथा यह आकाश तत्त्व (Ether Element) से संबंधित है।
मुख्य कार्य (Main Function) -
यह चक्र मौखिक संचार (Verbal communication), सत्य बोलना और खुद के अभिव्यक्ति (Self Expression) से जुड़ा हुआ है। जब यह संतुलित होता है तो व्यक्ति साफ, विनम्र और आत्म-विश्वास (Self confidence) के साथ बोलता है। जब यह असंतुलित होता है तो व्यक्ति या तो बहुत ज्यादा या बिल्कुल नहीं बोल पाता। बात करते समय डर या हिचक, झूठ बोलने की आदत इत्यादि इस चक्र के असंतुलन का पहचान है। जब यह चक्र संतुलित होता है तो व्यक्ति की आवाज मधुर और प्रभावशाली होती है।
संतुलन का उपाय (How to balance throat chakra):-
(ⅰ) “हं”मंत्र का नित्य जप।
(ii) नीले रंग का कपड़ा पहनें।
(iii) सत्य बोलें।
(ⅰv) योग और ध्यान करें
(ⅴ) नित्य “ॐ” शब्द का उच्चारण करें
विशुद्ध चक्र बीज मंत्र (Beej Mantra):
आज्ञा चक्र – 7 चक्रों का रहस्य का छठा द्वार
(6) आज्ञा चक्र (Ajna Chakra / Third Eye chakra):
यह चक्र दोनों भौहों के बीच (between the two eyebrows), ललाट के बीचों-बीच स्थित होता है। इसे ही लोग “तीसरी आँख ” या ” ज्ञान नेत्र ” कहते हैं। यह चक्र विवेक,बुद्धि और अंतर्ज्ञान (Intuition) से जुड़ा हुआ है।
यह चक्र चेहरे, नाक, साइनस, कान, ऑंखें ,मस्तिस्क (brain), पिट्यूटरी ग्रंथी (Pituitary gland), सेरिबैलम (Cerebellum), केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous system) पर गहरा प्रभाव डालता है और यदि यह चक्र असंतुलित हो जाये तो शरीर के इन अंगो में परेशानियां आ सकती हैं। पिटुइटरी ग्रंथि अगर प्रभावित होती है तो पुरे शरीर में हार्मोनल असंतुलन हो सकता है। आज्ञा चक्र को मन का तिसरा नेत्र भी कहा जाता है जो शुद्ध एनर्जी और ज्ञान से संबंधित है।
रंग और प्रतिक (colour and symbol):-
इसका रंग गहरा नीला (Indigo)है और यह दो पंखुड़ियों वाला कमल समान है।
कार्य (Functions) :
यह चक्र हमारी अंतर्ज्ञान (Intuition), बुद्धि, कल्पनाऔर निर्णय लेने की क्षमता को नियंत्रित करता है।
बीज मंत्र:-
इसका बीज मंत्र है – ॐ (Om)
प्रभाव (Effect) -
जब यह चक्र संतुलित होता है तो व्यक्ति का दिमाग शांत, विचार स्पष्ट और आत्म-विश्वास मजबूत होता है। मगर यह असंतुलित हो, तो भ्रम, तनाव या निर्णय लेने में परेशानी हो सकती है।
कैसे सक्रिय करें ? (How to activate Ajna chakra):
(i) ध्यान (meditation)
(ii) योगासन
(iii) नील रंग का उपयोग -नील कपड़ों का उपयोग करें,और नीली वस्तुओं को अपने आस-पास रखें।
(iv) सकानात्मक सोच (Positive thinking).
(v) स्वस्थ आहार (Healthy Food) और पानी पर्याप्त मात्रा में पिएँ।
नोट (Note): प्रतिकात्मक रूप में आज्ञा चक्र को दो पंखडियों वाला एक कमल के रूप में दर्शाया जाता है जो इस बात को इंगित करता है कि चेतना के इस स्तर पर व्यक्ति को “केवल दो” आत्मा और परमात्मा (स्व और ईश्वर का आभास रह जाता है।
सहस्रार चक्र – 7 चक्रों का रहस्य का अंतिम सोपान
(7) सहस्रार चक्र (Crown chakra): -
यह हमारे शरीर का सातवाँ और सबसे ऊँचा चक्र है। यह सिर के उपरी भाग में स्थित होता है जहाँ पर ब्रह्मरंध्र स्थित है। इसका स्वरूप एक हजार पंखुड़ियों वाला कमल जैसा है और इसिलिए इसे “सहस्र दल कमल” भी कहा जाता है। यह चक्र ईश्वर से मिलन, चेतना और ज्ञान का अंतिम द्वार है। कहा जाता है कि हमारे मस्तिष्क में उपस्थित बहुत ही महत्वपूर्ण पीनियल ग्रंथी (Pineal Gland) इस चक्र से जुड़ा होता है।
प्रतीक (Symbol) -
हजार पंखुड़ियों वाला बैंगनी (Violet) कमल। यह सातो चक्रों के ऊर्जा को मिलाकर उपर ले जाता है।
बीज मंत्र: -
इसका बीज मंत्र है- “ॐ” या “अहं ब्रह्मास्मि”
कार्य (Function) :-
यह उच्च आध्यात्मिक ज्ञान, मोक्ष और परम आनंद का केंद्र है।
जब यह सक्रिय होता है, तब व्यक्ति को आत्मा और परमात्मा का एकत्व अनुभव होता है।
यहाँ पर व्यक्ति का मन, बुद्धि और अहं सब शांत हो जाते हैं।
संतुलन के उपाय (Balancing tips): -
ध्यान, बीज मंत्र ‘ॐ’ का जाप, ईश्वर के प्रति समर्पण, सच्चाई और श्रद्धा, चक्र हिलिंग ध्यान और साकारात्मक विचार से इस चक्र को संतुलित किया जा सकता है।
निष्कर्ष (Conclusion):--
सातों चक्र मानव जीवन की ऊर्जा यात्रा के सात पड़ाव हैं।
शरीर में पाए जाने वाले 7 चक्रों का रहस्य हमें यह सिखाता है कि सच्ची शक्ति हमारे भीतर ही निहित है।
मूलाधार से सहस्रार तक की यह यात्रा केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आत्मिक विकास की भी प्रतीक है।
जब ये सभी चक्र संतुलित होते हैं, तो मन शांत होता है, शरीर स्वस्थ रहता है और आत्मा आनंदमय हो उठती है।
हर चक्र हमारे जीवन के किसी न किसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है — स्थिरता, सृजन, आत्मविश्वास, प्रेम, वाणी, अंतर्ज्ञान और अंत में आत्मबोध।
जब ऊर्जा सहस्रार तक पहुँचती है, तो साधक का मिलन परम चेतना से होता है — यही जीवन का परम उद्देश्य है: “अहं ब्रह्मास्मि।”
A Beginner's Guide to the 7 Chakras and Their Meanings :
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